होगी मुश्किल ना जो
आसान, तो फिर क्या होगा,
कल तो था कल की तरह, आज भी धोखा होगा?
अपने हिस्से के गमों
को, न कभी बाँट सका मै,
क्या पता कितनों का
दिल- उसने यूं रखा होगा.
चोट लगती भी है तो, दर्द न यूं होता है,
उसकी ही रुह हूं मै, इतना तो वो समझा होगा.
फिर से बारिश, ये हवा, और मेरा तल्ख़ जिगर,
वो उधर हाँ, कि
नहीं- ना ही में उलझा होगा.
दुआ में हाथ उठा- फिर से गिरा
जाए ‘नज़र’,
उसकी खातिर तो ये, पहला
ही ना किस्सा होगा.
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