बुधवार, अप्रैल 24, 2013

घर जाऊं कि न जाऊं?

कुत्ते को पाला,
मैंने, बिल्ली को पाली,
बिल्ली के कटोरे से,
खाने लगा कुत्ता,
बिल्ली गुर्राने लगी,
कुत्ते से अच्छा,
सोचा- यही होना था,
आगे चली ये दुनिया,
कल कुत्ता अपने कटोरे पर,
बिल्ली वापस म्याऊँ,
बहुत डर लगता है,
घर जाऊं,
कि न जाऊं?
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रविवार, अप्रैल 07, 2013

बंद नहीं करूँगा दौडना-भागना


कई दिनों और महीनों से,
दौड़ रहा हूँ,
भाग रहा हूँ,
सच कहूँ तो कुछ सालों से,
अपने भीतर,
अंदर- बहुत अंदर,
जहाँ आती नहीं कोई रौशनी,
सुनायी देती नहीं कोई आवाज़,
सिवा खामोशी की चीख के,
गहराई दर गहराई,
जमी हुई है काई,
बुनी हुई है,
टूटे संबंधों की रस्सी,
लगी हुई है,
कहीं-कहीं गाँठ,
मेरे पहुँचने से पहले,
झूल जाती है,
और चली जाती है,
कुछ और आगे,
हाथ आयेगी कि नहीं?
फ़िलहाल दौड़ता तो जा रहा हूँ,
सोच लिया है-
रूकने से पहले,
बंद नहीं करूँगा,
दौड़ना-भागना!
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शुक्रवार, अप्रैल 05, 2013

तालाब का पानी


मैंने देखा भर है,
छुआ नहीं,
शांत और ठहरे हुए,
तालाब के पानी को,
चुप-चाप और खामोश,


करते हुए इन्तजार,
किसी कंकड का,
जो रख दे हिला-डुला कर,
मचा  दे उथल-पुथल,
और बना जाए सार्थक,
होना तालाब का पानी,
जो ठहरा हुआ नहीं.
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