बुधवार, फ़रवरी 29, 2012

रात जा रही है...

रात जा रही है,
बुरा है-
कल का दिन आएगा.
और जुड़ जाएगा एक,
हमेशा की तरह ही,
जब तुम नहीं आये!
अच्छा भी है-
रात जायेगी और,
कल का दिन आएगा.
मै सजा लूंगा-
फिर से,
उम्मीदों की दूकान.
क्या करूं?
धंधे का उसूल है.
कोई आये न आये-
दूकान तो सजानी ही होती है,
हर रोज!
पूछ लो किसी से.