शुक्रवार, अप्रैल 05, 2013

तालाब का पानी


मैंने देखा भर है,
छुआ नहीं,
शांत और ठहरे हुए,
तालाब के पानी को,
चुप-चाप और खामोश,


करते हुए इन्तजार,
किसी कंकड का,
जो रख दे हिला-डुला कर,
मचा  दे उथल-पुथल,
और बना जाए सार्थक,
होना तालाब का पानी,
जो ठहरा हुआ नहीं.
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3 टिप्‍पणियां:

  1. भावनापूर्ण विचार
    गहरे तक मन को भेदते हैं
    सन्देश देती रचना
    बधाई सार्थक लेखन के लिये

    आग्रह है मेरे ब्लॉग में भी सम्मिलित हों ख़ुशी होगी

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