मंगलवार, फ़रवरी 12, 2013

कांटे- गुलाब के साथ


कल कहा मैंने, 
काँटों से,
क्या नहीं सोचते कुछ भी?
उग आते हो बेझिझक, 
और रहते हो, 
बेशर्मी से- 
मखमली-नाजुक-खूबसूरत,
गुलाबों के साथ,
कहाँ वो,
तुम कहाँ?

पहले तन गया,
सुन कर और जरा,
फिर कहा कांटे ने-

अक्सर रोती है कली,
और कहती है मुझसे-

अभी यह हाल है मेरा,
तुम्हारे होते! 
भैया कांटे,
अगर तुम न होते... 
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