कल कहा मैंने,
काँटों से,
क्या नहीं सोचते कुछ भी?
उग आते हो बेझिझक,
और रहते हो,
बेशर्मी से-
मखमली-नाजुक-खूबसूरत,
गुलाबों के साथ,
कहाँ वो,
तुम कहाँ?
पहले तन गया,
सुन कर और जरा,
फिर कहा कांटे ने-
अक्सर रोती है कली,
और कहती है मुझसे-
अभी यह हाल है मेरा,
तुम्हारे होते!
भैया कांटे,
अगर तुम न होते...
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काँटों से,
क्या नहीं सोचते कुछ भी?
उग आते हो बेझिझक,
और रहते हो,
बेशर्मी से-
मखमली-नाजुक-खूबसूरत,
गुलाबों के साथ,
कहाँ वो,
तुम कहाँ?
पहले तन गया,
सुन कर और जरा,
फिर कहा कांटे ने-
अक्सर रोती है कली,
और कहती है मुझसे-
अभी यह हाल है मेरा,
तुम्हारे होते!
भैया कांटे,
अगर तुम न होते...
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