शनिवार, अक्तूबर 12, 2013

पेड़, तुम कैसे हो?

पेड़,
तुम कैसे हो?
फल भी देते थे,
दिन भर- दिन में,
महीना पहले,
और रोते भी थे,
रात को,

रात को भी दे देते फल तुम,
कोई चाहता तो, 
किन्तु दिन में रोते नहीं थे,
बीस-तीस डालियों और,
दो-तीन सौ पत्तियों के जरिये,
हालाँकि फल देते थे तुम,
दो-तीन सौ डालियों और,
अनगिनत टहनियों तक से,
फिर भी उतना नहीं रोते थे तुम,
जितना रो रही है,
बुधना की बेटी,
दो-तीन दिन से,
कहीं फंस गयी थी,
कुछ झाड़ियों, टहनियों और,
मोटी डालियों के बीच,
नहीं निकल पाई थी,
जब तक नहीं बदला था,
हिचकियों में-उसका रोना,
फिर चुप हो गयी थी,
जैसे बिन हवा के,
हो जाते हो तुम खड़े,
बिना हिलाए,
अपनी पात्तियां, टहनियां और डालियाँ,
उसकी भी हवा निकल गयी थी,
लेकिन वो तो खड़ी भी नहीं होती,
बुधना की बेटी...

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