शुक्रवार, सितंबर 20, 2013

लिखी है कविता ?

हे ईश्वर,
क्या लिखी है तुमने कभी,
कोई कविता?
क्या उलीचा है बाहर,
तलहटी में धंसता जाता,
दो कौड़ी का अपमान,
कि उगला है-
अपने भोगे यथार्थ को,
जो था सपने से भी दूर,
तुम्हारे,
अथवा,
क्या बांटी है,
दूसरों से,
अपनी कल्पना,
जिसमे न हो कोई पैबंद,
लिथड़ा-चिथड़ा,
बस वही हो सब कुछ,
लाल, गुलाबी, पीला और हरा,
जो हो ही नहीं सकता सच,
तुम्हारे जैसे ईश्वर के होते,
जो कविता तक,
नहीं लिख सकता.

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