रविवार, नवंबर 18, 2012

तुम नहीं आओगे...

तुम नहीं आओगे- ऐसा लगता है, मैं ही खबर दे दूं, दिल ये कहता है,
भंवरे तो उतनी गूँज करते नहीं, पर अब भी जूही यहाँ महकती है,

गोया भूले से इधर आया हो, या कि उसे खींच कोई लाया हो,
सूरज भी पहले जैसा लगता नहीं, दिखने में आग तो दहकती है.

इक जगह ना चैन से ठहरता है, चन्दा भी आता-जाता रहता है,
टिक गया 'नज़र' जो दो-चार घड़ी, चांदनी फिर जोर से लहकती है.


न कहा कुछ भी मैंने कोयल से, क्या है पगली को एक पागल से,
रात मानो काटी हो- मेरी ही तरह, देखते ही सुबह वो कुहकती है.


जैसे पसरा हुआ सा मातम हो, कोई गुजरा है बस- नया गम हो,
ना तो इठला के छुए फूलों को, अब न भूले- हवा बहकती है.
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5 टिप्‍पणियां:

  1. न कहा कुछ भी मैंने कोयल से, क्या है पगली को एक पागल से,
    रात मानो काटी हो, मेरी ही तरह, देखते ही सुबह वो कुहकती है.
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    वाह बहुत सुन्दर!

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  2. अर्थपूर्ण ग़ज़ल है केशव जी
    मॉडरेटर --
    www.kahekabeer.blogspot.in

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  3. बेह्तरीन ग़ज़ल!शुभकामनायें.

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