खरिहान
कविताएं- केशव 'कहिन' और ग़ज़लें- के 'नज़र' के नाम से
शुक्रवार, जनवरी 18, 2013
बरसता नहीं पानी!
जब वो नहीं आते थे,
तो पानी बरसता था.
इक आग सी लगती थी,
बरसता क्यों है पानी!
आज वो आए हैं,
इक आग सी लगी है,
अब आग भी लगती है,
तो बरसता नहीं पानी!
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रविवार, जनवरी 13, 2013
लौट कर
पीता-पीता पानी
,
पढ़ते-पढ़ते अखबार
,
और उतरता हुआ सीढियां
,
मै गया था चला
,
उन्हें समझाने
,
और बताने.
लौटकर
,
कोशिश में लगा हूँ-
उतरने की अखबार से
,
पढ़ने की पानी को
,
और पीने की
,
सीढ़ियों को.
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