सोमवार, सितंबर 17, 2012

गोजर


लिपट गई थी,
दौड़ अचानक.
मै नीचे-
वो ऊपर,
चिकनी मिट्टी के.
बारिश ने कर दिया था,
आटा गीला,
धीरे-धीरे,
बूँद-बूँद ने,
माओं ने भी छोड़ दिए थे,
ठसिया कर,
बे-मन के,
बढते-घिसटते-
छोटे-छोटे गोजर,
देख जिन्हें डर गयी थी वो.
इतने दिनों के बाद दिखा एक गोजर,
हो सकता है मादा हो,
हो सकता है माँ भी हो,
क्या जाने यह उन्हीं की हो...
क्या हो गया है?
इस बारिश में,
तेज़ाब बरसने लगा है.
        ---

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

आपने कहा-