बस रो रहा हूँ,
वजह ?
याद नहीं.
कोई कितना याद रखे
भला!
हां,
भला से याद आया-
कितना भला था,
सन अस्सी का ज़माना.
न सरकार रूलाती थी,
न कोई दरकार नचाती थी,
दो वजहें तो याद आ ही
गयीं न,
और हां,
सुमन भी दाल में
ना-ना करते भी,
चार चम्मच घी डाल ही
देती थी,
बंटू भी पैर की
उंगलियां चटकाकर बजाये बिना,
रूठा-रूठा सा रहता था,
बाबूजी भी इतने
खिसियाते नहीं थे,
बस कभी-कभी,
अपने पितृत्व पर
संदेह कर चुप हो जाते थे,
और-
इसी बाजार के लोग
मुझे पकड़ते रहते,
मै छुड़ाता रहता था-
अरे भाई कुछ नहीं
चाहिए.
आप भी तो मुझसे मिलने,
हफ्ते में दो बार आते
ही थे.
तब न आपको पता था-
न मै ही जानता था,
अकेली उम्र ही बढ़ती
है,
बाकी सब कुछ घटता
जाता है,
अब आप ही बताएं,
रोने के लिए वजह
जरूरी है क्या?
मेरा तो मानना है कि,
जरूरी बस रोना होता
है,
कोई वज़ह नहीं.
***
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