कल कहा मैंने,
काँटों से,
क्या नहीं सोचते कुछ भी?
उग आते हो बेझिझक,
और रहते हो,
बेशर्मी से-
मखमली-नाजुक-खूबसूरत,
गुलाबों के साथ,
कहाँ वो,
तुम कहाँ?
पहले तन गया,
सुन कर और जरा,
फिर कहा कांटे ने-
अक्सर रोती है कली,
और कहती है मुझसे-
अभी यह हाल है मेरा,
तुम्हारे होते!
भैया कांटे,
अगर तुम न होते...
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काँटों से,
क्या नहीं सोचते कुछ भी?
उग आते हो बेझिझक,
और रहते हो,
बेशर्मी से-
मखमली-नाजुक-खूबसूरत,
गुलाबों के साथ,
कहाँ वो,
तुम कहाँ?
पहले तन गया,
सुन कर और जरा,
फिर कहा कांटे ने-
अक्सर रोती है कली,
और कहती है मुझसे-
अभी यह हाल है मेरा,
तुम्हारे होते!
भैया कांटे,
अगर तुम न होते...
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अच्छी रचना.
जवाब देंहटाएंकभी www.kahekabeer.blogspot.in पर भी आएं
बहुत सटीक भाव
जवाब देंहटाएंsimply superb. Nice Lines.
जवाब देंहटाएंhttp://madan-saxena.blogspot.in/
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बहुत ही बढ़िया सर!
जवाब देंहटाएंसादर
सही कहा कली ने ... अगर कांटे न होते तो उनका क्या होता ...
जवाब देंहटाएंबेह्तरीन अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंप्यार पाने को दुनिया में तरसे सभी, प्यार पाकर के हर्षित हुए हैं सभी
प्यार से मिट गए सारे शिकबे गले ,प्यारी बातों पर हमको ऐतबार है
प्यार के गीत जब गुनगुनाओगे तुम ,उस पल खार से प्यार पाओगे तुम
प्यार दौलत से मिलता नहीं है कभी ,प्यार पर हर किसी का अधिकार है
bahut sundar
जवाब देंहटाएं