शनिवार, नवंबर 23, 2013

विवश नहीं होती माँ !

जाते-आते,
दौड़ते-सुस्ताते,
बनीं पगडंडियाँ,
कुछ थके,
कुछ रुके,
कुछ लालसा,
कुछ उत्तेजना भरे,
कदमों की आहट से,

कहना कि- विवशता भरे,
होगा अपमान,
उस बूढ़ी माँ का,
जो जमीदार के हाथों,
उसके पैरों की बूट से कूटे,
घायल बेटे के इलाज के लिए,
जा रही है,
मनरेगा की दिहाड़ी से,
कुछ दाम कमाने,
चलते रहना,
बिना रुके,
बिना थके,
कुछ उत्तेजना से,
कुछ लालसा से,
उसी पगडंडी पर,
कैसे गाली दे सकता हूँ,
उस बूढ़ी को,
विवश कह कर,
क्या विवश होती है कभी,
माँ?

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