हालात पे रोना है
यूं- तो कीजिये भी क्या,
जानी ना कद्र, तुर्रा ये- शौक़ीन भी
वही.
हैरान होके लीजिए न, नाम
खुदा का,
जो एक है, सो
दूसरा- और तीन भी वही.
सरकार दर्द जानती, सरकार
देखती,
पर माजरा अजीब है कि, दीन
भी वही.
हट जाइए, सो
जाइए, कि भूल जाइए,
जिसकी नज़र में
किस्सा- ग़मगीन भी वही.
नुक्ताचीनी किस पे, किस
बात पे ‘नज़र’
ये तमाशा उनका है, तमाश-बीन
भी वही.
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