खरिहान
कविताएं- केशव 'कहिन' और ग़ज़लें- के 'नज़र' के नाम से
शनिवार, जुलाई 14, 2012
कबूतर नहीं मिले.
पाक है मुहब्बत
,
और इश्क है खुदा
?
उठेगा नहीं हमसे
,
इस झूठ का वज़न.
फिर
,
गम उठाने की-
कोई शर्त
है आयद
?
'....'
करना मुआफ साहिब!
खत आपको ना पहुंचे
,
तो समझना-
मेरी खता नहीं
,
कबूतर नहीं मिले.
---
1 टिप्पणी:
दिगम्बर नासवा
मंगलवार, अक्टूबर 22, 2013
वाह ... क्या बात है ...
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