कल
साक़ी की आँखों से, इशारा क्या हुआ,
मत
पूछिए महफ़िल में- नज़ारा क्या हुआ.
बुलाया
किस-किस को साक़ी ने- उज्र क्यों,
आखिर
में तो हमें ही पुकारा- क्या हुआ.
न
दीवाना था- मै जाँ को हथेली पे ले गया,
सोचो
तो- ऐसा इम्तेहां, दुबारा क्या हुआ?
तुम
जीत लो जहां, दुनिया भी रख लो तुम,
क्या
मिला ‘नज़र’ को छोड़ो- वो हारा,
क्या हुआ!
***
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