शुक्रवार, मार्च 22, 2013

आज भर!

साफ़-साफ़ देखा था मैंने,
आते ही अंदर कमरे में,
बैठी पास पलंग के ,
लाल-गुलाबी गठरी को,
झट से सरक कर बदल गयी थी,
घूंघट वाली नार में.
लगा था मुझको,
बीस के बदले,
भरी थीं उसने-
तीन ही साँसे.

फिर बढ़ते हाथों को देख,
जैसे कुछ अंदेशा हो,
बोल पड़ी थी-
पी... पी लीजिए दूध,

हैं?
दूध देने आई थी,
छोड़ दीजिए,
हमारी कसम,
...
आज भर!
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