खरिहान
कविताएं- केशव 'कहिन' और ग़ज़लें- के 'नज़र' के नाम से
शुक्रवार, मार्च 29, 2013
दोनों एक हैं!
दोनों एक हैं,
मैंने देखा है,
खुद अपनी आँखों,
आदमी और औरत को,
दोनों को,
जो झोंकते आये हैं,
धूल सबकी आँखों में,
देखे और पकड़े जाने पर,
खिलखिला कर कहते हैं-
भलाई है सबकी,
इसी झूठ में!.
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